ऐसा नहीं है कि सिर्फ मोदी की नीतियों से प्रभावित होकर चीन भारत के साथ रिश्तों के नए आयाम तलाश रहा है। इससे पहले केंद्र में रही कांग्रेस की सरकार के दौरान भारत चीन से अच्छे संबंधों का पक्षधर रहा है, किन्तु तब चीन की ऐसी आर्थिक मजबूरियां नहीं थीं।
चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की भारत यात्रा से दोनों देशों के रिश्तों में जमी बर्फ कुछ पिघली है। चीन की यह यात्रा साबित करती है कि आज के दौर में विश्व के देशों में कूटनीति पर बाजार का जोर है। सीमा संबंधी विवादों और विचारधारा में मतभेद होने के बावजूद चीन को भारत में उपभोक्ताओं का बड़ा बाजार दिखाई दे रहा है। चीन को अभी जिस तरह अमेरिका ने झटका दिया है, उससे भविष्य की आर्थिक चुनौतियों के प्रति चीन सावधान हो गया है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के बदले हुए रवैये के प्रति चीन आशंकित हो उठा है। वैसे भी अमेरिका चीन के प्रति कई मुद्दों पर मुखर रहा है। अमेरिका पहले दबे-छिपे तरीके से चीन की नीतियों और विस्तारवादी की कूटनीति का आलोचक रहा है पर ट्रम्प के साथ चीन के रिश्तों में ज्यादा तल्खी आई है।
अमेरिका चीन में मुस्लमानों के दमन के मामले को मानवाधिकार का हनन करार दे चुका है। दक्षिण चीन सागर पर चीन के आधिपत्य की अमेरिका भर्त्सना कर चुका है। इस क्षेत्र के निर्जन टापुओं पर चीन सैनिक अड्डे बना रहा है। जापान चीन की इस हरकत की कड़ी आलोचना कर चुका है। यह मुद्दा दोनों देशों के रिश्तों में कडुवाहट घोल चुका है। अमेरिका से आर्थिक संबंध बिगड़ने के बाद चीन किसी तरह जापान और भारत से रिश्ते सुधारने की कोशिश में जुटा हुआ है। यह वजह रही कि जापान से दक्षिण सागर का विवाद होने के बावजूद शी जिनपिंग ने ओसाका में जी-20 सम्मेलन में शिरकत की और जापान के साथ व्यापार बढ़ाने पर जोर दिया।
इसी तरह चीन भारत के साथ भी अपने पूर्वाग्रहों के बावजूद व्यापारिक रिश्ते बढ़ाने की दिशा में आगे बढ़ रहा है। यही वजह रही कि पाकिस्तान के कट्टर समर्थक होने के बावजूद चीन ने कश्मीर में धारा 370 के मुद्दे को हवा नहीं दी। जबकि इससे पहले चीन इस मुद्दे पर पाकिस्तान के पक्ष में बयान दे चुका है। इसके विपरीत इस्लामिक आतंकवाद के खतरों के प्रति भारत से सहमति जताई। इसी तरह भारत यात्रा के दौरान चीन ने भारत−चीन सीमा विवाद को भी तरजीह नहीं दी। यह बात दीगर है कि चीन मुंह में राम बगल में छुरी की नीति अपनाता रहा है। पिछली बार जब जिनपिंग भारत के दौर पर आए थे तब चीनी सैनिक भारतीय सीमा में घुस आए।
आतंकी सरगना अजहर मसूद के मुद्दे पर भी चीन ने विश्व के खिलाफ पाकिस्तान का साथ दिया। सुरक्षा परिषद् में पाकिस्तान के पक्ष में वीटो किया। अंततः अमेरिका के सुरक्षा परिषद में चीन से जवाब-तलब करने की धमकी के बाद ही चीन इस मुद्दे पर पीछे हटने को तैयार हुआ। चीन इस तरह की बेजा हरकतों की पुनरावृत्ति करके भारत पर दबाव डालने का प्रयास करता रहा है। पाकिस्तान से संस्कृति और सत्ता में बिल्कुल बेमेल होने के बावजूद केवल भारत को दबाव में लाने के लिए चीन उसकी नापाक हरकतों को शह देता रहा है। अब चीन की समझ में आने लगा है कि अमेरिका से बिगड़ते रिश्तों से होने वाले आर्थिक नुकसान की भरपाई के लिए भारत से रिश्ते सुधारना जरूरी है। पाकिस्तान के नाक−मुंह सिकोड़ने के बावजूद चीन ने उसकी परवाह नहीं की। कश्मीर मुद्दे का जिक्र तक नहीं किया। कारण स्पष्ट है पाकिस्तान कूटनीतिक संबंधों में सहायक हो सकता है किन्तु आर्थिक संबंधों में उसकी हैसीयत विश्व में भिखारी जैसी बन चुकी है।
पाकिस्तान को सिर्फ मदद की दरकार है। इसके बदले में वह किसी भी देश को कुछ दे नहीं सकता। पाकिस्तान भयंकर आर्थिक संकट के दौर से गुजर रहा है। अमेरिका हो या चीन, दोनों देश इस बात को बखूबी जानते हैं कि पाकिस्तान का इस्तेमाल कैसे करना है। अब जब चीन−अमेरिका संबंधों का वैश्विक परिदृश्य बदला हुआ है तो पाकिस्तान की अहमियत कम होती जा रही है। इन दोनों देशों को पाकिस्तान बोझ लगने लगा है। इसी वजह से चीन ने पाकिस्तान की अनसुनी करके भारत के साथ नए तेवर−कलेवर में दोस्ती का हाथ बढ़ाया है। चीन आर्थिक मंदी से निपटने के लिए भारत के बाजार में निवेश की संभावनाएं तलाश रहा है और निर्यात पर जोर दे रहा है।
ऐसा नहीं है कि सिर्फ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की नीतियों से प्रभावित होकर चीन भारत के साथ रिश्तों के नए आयाम तलाश रहा है। इससे पहले केंद्र में रही कांग्रेस की सरकार के दौरान भारत चीन से अच्छे संबंधों का पक्षधर रहा है, किन्तु तब चीन की ऐसी आर्थिक मजबूरियां नहीं थीं। भारत में किसी भी राजनीतिक दल की सरकार रही हो, सभी ने पड़ोसी देशों से सामान्य संबंध बनाने के प्रयास किए हैं। भारत की विदेश नीति कभी चीन−पाकिस्तान की तरह विस्तारवादी और आक्रामक नहीं रही है। भारत ने इन दोनों देशों से हमेशा सौहार्द्रपूर्ण संबंध बनाने में विश्वास रखा है। इसका प्रमाण भी है कि चीन के सैंकड़ों बार सीमा पर अतिक्रमण कर उकसाने की कार्रवाई करने के बावजूद भारत ने हमेशा धैर्य का परिचय दिया है। यही नीति पाकिस्तान के साथ भी रही है किन्तु पानी सिर से गुजरने के बाद ही उसके साथ आक्रामक रूख अपनाया है।
पाकिस्तान में सत्ता की उथल−पुथल के कारण भारत विरोध कायम है। चीन में राजनीतिक स्थिरता बनी हुई है। कम्युनिस्ट सरकार मजबूती के साथ शासन कर रही है। चीन ने जनसंख्या वृद्धि में काफी हद तक नियंत्रण पा लिया है। इसके बावजूद बेरोजगारी की दर बढ़ रही है। इसमें कमी तभी संभव है जब चीन अपने उत्पादों के निर्यात में बढ़ोतरी करे। भारत के साथ व्यापारिक रिश्ते बेहतर बनाकर चीन इस दिशा में आगे बढ़ रहा है। यह निश्चित है कि चीन जिस तरह भारत के साथ संबंधों को बेहतर बनाने की दिशा में कदम बढ़ा रहा है, उससे दोनों देशों में विश्वास की एक नई दीवार कायम होगी। आर्थिक मजबूरियों के चलते अब इस बात की संभावना कम है कि चीन अपनी तरफ से विश्वास की इस दीवार में छेद करने की करने की हरकत करेगा।
-योगेन्द्र योगी